Sunday, September 13, 2009

कुम्हारिया न्यूक्लियर पावर प्लांट- हर पल मरेंगे लोग ‘मौत के साए में रोशनी की तलाश

कुम्हारिया न्यूक्लियर पाॅवर प्लांट।’ भारत-परमाणु डील पिछले एक साल से मनमोहन सोनिया के भाषणों में जनता की डील बनी रही जिसे इस समझौते के बारे में कुछ भी नहीं मालूम या यूं कहें हमारे देश का इतिहास रहा है जनता को किसी भी योजना और कानून के लागू होने तक उसके दांव-पेंच और पेचीदगियां नहीं बताई जातीं। उसी तरह समझौते हो जाते हैं और लोगों को केवल इतना पता चलता है कि सरकार ने उनकी जमीन किसी प्रोजेक्ट के लिए दे दी और वह वहां नहीं रह सकते। आज भी ऐसा ही हो रहा है केन्द्र सरकार ने परमाणु समझौते को पार लगा दिया। इस समझौते के बारे में पता उन्हें भी नहीं जो इसे पार लगाने कोशिशें कर रहे हैं व उन्हंे जो विरोध तो बातें मंे कर रहे हैं लेकिन जनता के सामने कोई तस्वीर साफ नहीं कर पा रहे है। इस शर्मनाक समझौते पर मोहर लगने के साथ ही हरियाणा मंे देश के सबसे बड़े २६० मेगावाट के प्लांट का रास्ता भी साफ हो गया है अब इस प्लांट की प्रकिया मंे तेजी आएगी। इस प्लांट का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को हरियाणा सरकार द्वारा बहुत पहले ही भेजा जा चुका है केवल केन्द्र की मोहर लगनी बाक़ी है । लेकिन यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस प्लांट से संबंधित सारी योजना बन चुकी है बस इसे कार्यनीतिक रूप देना रह गया है। 2450 एकड़ भूमि मंे लगने वाले इस प्लांट को कुम्हारिया पाॅवर प्लांट के नाम से जाना जाएगा। इसका नाम कुम्हारिया इसलिए रखा गया है। इस प्रोजेक्ट के लिए जमीन फतेहाबाद जिले के गोरखपुर गांव की 1700 एकड़, कुम्हारिया की 300 व काजलहेड़ी की 200 एकड़ जमीन एक्वायर की जाएगी। यह जमीन कृषि उत्पादन की दृष्टि से उच्च उत्पादकता वाली जमीन है। इस सारी जमीन मंे पंचायती या सरकारी जमीन का कोई हिस्सा शामिल नहीं किया गया है। यदि इस जमीन का वर्गीकरण किया जाए तो 2000 एकड़ जमीन अच्छी उत्पादकता वाली है केवल गोरखपुर गांव की 450 एकड़ भूमि सेमग्रस्त है। जिसमंे से 200 एकड़ पूरी तरह खराब हो चुकी है। जिसकी उत्पादकता छपसस है यह भूमि आम्लिक ;एसिड ग्रस्तद्ध हो चुकी है। इसका कारण 1995 मंे बाढ़ का प्रभाव है, जिसे लगभग 12 साल बीत चुके हैं इतने लंबे अरसे के बाद भी इसका सरकार या कृषि विभाग द्वारा कोई उपचार न किए जाने के बाद यह आज पूरी तरह खराब हो चुकी है। इस सेम की समस्या के निपटान के लिए इस दौरान एक डेªन बनाई गई , इस डेªन का पानी फतेहाबाद ब्रांच मंे डाला जाना था लेकिन इस पानी को माईनर मंे डाला गया जिसका लोगांे ने विरोध किया। इसके अलावा किसी विभाग द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया। यदि इस जमीन के अधिग्रहण से प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होने वाले लोगांे का वर्गीय विश्लेषण किया जाए तो केवल 10 जमींदार परिवार हैं जो प्रत्येक 50 एकड़ से अधिक भूमि के ये मालिक है, भूमिहीन हो जाएंगे। इसके अलावा 10ः धनी किसान, 20ः मध्यम किसान प्रभावित हांेगे। बाकी 65: गरीब किसानांे की जमीन इस प्लांट के लिए एक्वायर होगी। यह स्थिति तो केवल जमीन की है। जब इतने बड़े इलाके से जुड़े रोजगार की बात करते हैं तो हम देखते हैं कि खेती का काम ऐसा काम जिसमंे कुछ लोग प्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं और एक बड़ी संख्या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होगी । प्रत्यक्ष रूप से 350 परिवारांे के 1500 लोगांे का रोजगार भी छिन जाएगा। जिसमंे ज्यादातर परिवार खेती पर ही निर्भर करते हैं। अब तक यह देखा गया है कि जहां भी भूमि का अधिग्रहण किया गया है वहां पर एक बड़ी समस्या खेत मजदूरांे की बनकर उभरी है। 6ध्12ध्2007 को ‘जागरण’ मंे छपी एक रिपोर्ट मंे ‘नवदान्या और एक्शनैड’ नामक गैर सरकारी संस्थाआंे के सर्वे के अनुसार कुछ महत्वपूर्ण तथ्य साफ हुए हैं। उनकी रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार भूमि अधिग्रहण करने से अब तक लाखांे खेत मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। शहरी आवासीय कालोनियां बनाने, बांधांे, विशेष आर्थिक जोनांे व पावर प्लांटांे के निमार्ण हेतु जमीन अधिग्रहण करते समय खेतिहर मजदूरांे को शुरू से ही नज़रअंदाज किया जाता रहा है। क्या जनता जमीन देना चाहती है ? इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए एक्वायर की जाने वाली कुल 2450 एकड़ जमीन मंे से केवल 450 एकड़ भूमि जो सेमग्रस्त है केवल इसके मालिक ही जमीन देना चाहते हैं। चूंकि 200 एकड़ भूमि जो पूरी तरह अम्लीय हो चुकी है उसमंे कुछ भी पैदावार नहीं होती और 250 एकड़ भूमि मंे औसत पैदावार का 1/3 हिस्सा भी मुश्किल से पैदा होता है। इसके अलावा 2000 एकड़ जमीन के मालिक बिल्कुल भी अपनी जमीन नहीं देना चाहते। सबसे अहम् बात तो यह है कि लोगांे को प्रोजेक्ट के बारे मंे कुछ पता ही नहीं है। प्रोजेक्ट के लगने से यहां उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ने वाले प्रभावांे के बारे मंे ये अनभिज्ञ हैं। वे नहीं जानते कि परमाणु उर्जा केन्द्र से निकलने वाली विकिरणांे से भविष्य मंे कितने भयानक परिणाम होगें हैं। सच तो यह है कि स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इन दुष्प्रभावांे के बारे मंे कोई नहीं जानता। इस प्लांट से जुड़े हर तथ्य पर नजर डाली जाए तो यह तय है कि आस-पास के दस किलोमीटर तक के इलाके मंे लोगांे का स्वास्थ्य इससे बुरी तरह प्रभावित होगा। कैंसर, विकलांगता व चर्म रोगांे की इस इलाके मंे भरमार तो होगी।साथ ही साथ आनुवांशिक अपंगता की दर भी बढे़गी। इस प्लांट से लगने वाले जो गांव इससे प्रभावित होगे,उनमंे गोरखपुर,काजला,कुम्हारिया,मोची, चैबारा,जाण्डली खुर्द, चन्द्रावल, झलनियां,सिवानी आदि मुख्य हैं। पशुपालन होगा बड़े स्तर पर प्रभावित अब तक जहां भी भूमि एक्वायर की गई है वहां पशुपालन बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है जिससे इस पर निर्भर परिवारांे व उन महिलाआंे के सामने रोजगार का संकट खड़ा हुआ है जो पशुपालन के जरिये अपने परिवार की आर्थिक मदद् करती हैं। भूमि अधिग्रहण से अब तक भेड़-पालन, मुर्गी-सुअर फार्मांे मंे कमी आई है। लेकिन न्यूक्लियर पाॅवर प्लांट केवल उसी भूमि पर निर्भर पशुपालन को ही नहीं बल्कि आसपास के इलाके मंें भी विपरीत प्रभाव डालेगा। इससे पशुआंे मंे बीमारी पैदा होगीं और व्यावसायिक पशुपालन एक घाटे का सौदा बन जाएगा। इससे व्यापक तौर पर हरियाणा का दुग्ध उत्पादन भी कम होगा। सरकार यह प्लांट यहां क्यांे लगाना चाहती है? 2600 मेगावाट के प्लांट को चलाने के 300 क्यूसिक पानी की निर्बाध गति की आवश्यकता होती है । जो यहां फतेहाबाद ब्रांच और सिंधु मुख फीडर देने मंे सक्षम हैं। प्रोजेक्ट के यहां लगाने से विकास की क्या संभावनांए हैं? विकास की हर व्यक्ति के लिए अलग परिभाषा होती है और अपनी तरह के मायने हैं। जो विकास होगा वह मजदूर और गरीब किसान का नहीं बल्कि बड़े पूंजीपतियांे और बहुराष्ट्रीय कम्पनियांे का विकास होगा। उनके लूट के अवसर और खुलंेगे। क्या इसके बाद बिजली की समस्या समाप्त हो जाएगी? नहीं, ये प्लांट जो बिजली उत्पादन के नाम पर जमीन अधिग्रहण करके लगाएं जा रहे हैं वो खेतांे मंे किसानांे को बिजली देने या ‘लगने वाले बिजली के कटांे की समस्या का हल करने के लिए नहीं बल्कि उन कंपनियांे की बिजली देने के लिए है जो विशेष आर्थिक जोनांे मंे आने वाली हैं? इस प्लांट के लगने से रोजगार के कितने अवसर पैदा होंगे? सरकारी दावा यह है कि प्लांट मंे 10000 लोगांे को नौकरियां मिलंेगी और40000 लोगांे के लिए अतिरिक्त रोजगार पैदा होगा। इसे कितना सही माना जा सकता है? नहीं, ये दावे केवल भ्रमित करने के लिए किए जाते हैं। बाद मंे कम्पनियां व सरकार दोनांे अपनी बात से मुकर जाते हैं। दूसरी बात यह है कि जो रोजगार पैदा होगा वो योग्यता मंे देखंे तो किसान के बेटे के लिए नहीं होगी वह इतनी योग्यता नहीं ले सकता कि इंजीनियर बन पाए वहां। यहां के बच्चे एक चपड़ासी या मजदूर ही बन पाएंगे अब यह बात सोचने योग्य है कि ऐसे कितने लोगांे की वहां आवश्यक्ता होगी। यदि यह प्लांट इतना खतरनाक है तो सरकार इसे क्यांे लगाना चाहती है क्या इससे बिजली उत्पादन कोयले या बिजली जैसे अन्य तरीकांे से सस्ता है ? नहीं, न्यूक्लियर ;यूरेनियमद्ध से बिजली उत्पादन, कोयले और अन्य तरीके से डेढ़ गुणा मंहगा है और ज्यादा खतरनाक भी। यह केवल इसीलिए लगाया जा रहा है क्यांेकि सरकार अमेरिका के आगे जैसे विकसित देशांे के आगे हमारे देश के लिए खुले द्वार नीति अपनाकर उनकी दलाली कर रही है आज वहां के माल के लिए भारत एक बाजार के रूप मंे दिख रहा है इसी चाकरी का नतीजा पाॅवर प्लांट के रूप मंे हमारे सामने है। क्या दूसरे देश भी प्लांट लगा रहे हैं ? नहीं, पिछले एक दशक मंे विकसित देशंांे मंे प्लांटांे की संख्या मंे कमी आई है, नया लगाने की बजाय पुराने चल रहे प्लांटांे को बन्द किया जा रहा है।

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