लोकसभा की कार्यवाही में चौथी दुनिया और रंगनाथ मिश्र कमीशन रिपोर्ट
ख़ुद को दलितों का मसीहा कहलाना पसंद करने वाले लोक जनशक्ति पार्टी अध्यक्ष रामविलास पासवान इस सवाल पर छूटते ही कहते हैं, रंगनाथ मिश्र कमीशन की अनुशंसा तो हर हाल में लागू होनी ही चाहिए. और रही कोटे की बात, तो सामान्य कोटे से ही १५ फीसदी आरक्षण दिया जाना चाहिए. पर पासवान जी, अगर सामान्य श्रेणी में से १५ फीसदी आरक्षण दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों को देने के लिए सरकार राजी हो जाती है तो देश में कैसा सामाजिक तू़फान उठेगा, इसका अंदाज़ा है आपको?
रामविलास पासवान फरमाते हैं, देखिए जब भी कोई नई पहल होती है, तो थोड़ी उथलपुथल होती है. लेकिन यह मसला मज़लूमों की तरक्की से जुड़ा है, इसलिए हम इसकी लड़ाई पुरज़ोर तरीक़े से लड़ेंगे. मतलब सा़फ है कि रामविलास पासवान अपने परंपरागत दलित-पिछड़ों के वोट बैंक को छोड़ना नहीं चाहते. अब बात करते हैं उस पार्टी की, जो खुद को ग़रीबों के अधिकारों की जंग लड़ने वाला अकेला वीर-बांकुरा साबित करने की हर व़क्त जद्दोजहद में रहती है. इसके महासचिव प्रकाश कारात फिलहाल इस मसले पर कुछ भी कहना नहीं चाहते हैं. इसके लिए उनके पास एक बड़ा माकूल सा जवाब है, मैंने अभी रिपोर्ट प़ढी नहीं है, इसलिए अभी इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता. अब प्रकाश कारात ऐसा कह रहे हैं तो उनकी बात माननी पड़ेगी, लेकिन एक सहज जिज्ञासा होती है कि क्या वाकई सच यही है? प्रकाश कारात जैसे बुद्घिजीवी और बेहद सजग नेता क्या सचमुच कमीशन की रिपोर्ट से अभी तक नावाक़ि़फ हैं? हालांकि प्रकाश यह ज़रूर कहते हैं कि उनकी पार्टी पहले रिपोर्ट के हर पहलू पर ग़ौर करेगी, फिर इस पर कोई प्रतिक्रिया देगी.
हालांकि रु़ख इनका सकारात्मक ही है. पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्घदेव भट्टाचार्य पार्टी की लाइन के मुताबिक़ उद्घोष भी कर रहे हैं. बुद्घदेव कहते हैं कि देश में अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों को विकास का एक समान मौक़ा मिलना चाहिए. भारतीय जनता पार्टी अपने पुराने रवैये पर ही क़ायम है. वह कतई नहीं चाहती कि इन अनुशंसाओं को लागू किया जाए. यह अलग बात है कि भाजपा भी सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह के साथ इस बात के पक्ष में है कि रिपोर्ट पेश की जाए. पर रिपोर्ट लागू हो, ऐसी मंशा भाजपा की नहीं है. भाजपा नेता सुषमा स्वराज कहती हैं कि इससे कई दुश्वारियां पैदा होंगी. भारतीय संविधान में, संसद में और प्रदेशों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों के लिए पहले से ही आरक्षण है. यदि इस अनुशंसा को लागू कर दिया जाता है तो दलित श्रेणियों के लिए आरक्षित लोकसभा और विधानसभा की इन सीटों पर ईसाई या मुसलमान जाति के लोग भी चुनाव लड़ सकेंगे. इससे उन्हें दोहरा लाभ होगा, जो भारतीय समाज के हित में नहीं है. भाजपा नेता अरुण जेटली भी सुषमा स्वराज की बात पर हामी भरते हैं. अरुण जेटली कहते हैं कि यह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सोची- समझी रणनीति की पहली कड़ी है. अनुशंसा लागू होगी तो आरक्षण का फायदा उठाने के लिए धर्मांतरण के मामले बढ़ेंगे. सामाजिक समीकरण बिगड़ेगा. जिस प्रदेश में ईसाइयों और मुसलमानों की संख्या ज़्यादा है, वहां वे सत्ता संभालने की स्थिति में भी आ सकते हैं. ऐसी हालत में भारतीय समाज की दलित जातियों में निराशा-हताशा फैलेगी. उनके उत्थान में अवरोध पैदा होगा. इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि इस साजिश को शुरुआत में ही तोड़ा जाए.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्यसभा सांसद डी राजा की दलील भी बिल्कुल प्रकाश कारात की तर्ज़ पर है. वह दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों की तऱक्क़ी तो चाहते हैं, पर फिलहाल कुछ भी कहने से बचना चाहते हैं. वजह वही, जो प्रकाश कारात फरमा रहे हैं. अभी रिपोर्ट का अध्ययन नहीं किया है, उन्होंने उसकी बारीकी नहीं समझी है. लिहाज़ा अभी कुछ बोलना मुनासिब नहीं. ज़ाहिर है, मुस्लिम आरक्षण के नाम पर सियासी दलों ने अपनी-अपनी हांडी चढ़ा रखी है.
हैरानी इस बात की है कि इस मुद्दे पर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और बसपा अध्यक्ष मायावती ने खामोशी साध रखी है. लालू यादव और मायावती, दोनों ही खुद को दलितों और मुस्लिमों का फरमाबदार साबित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखते. फिर यह चुप्पी क्यों? क्या पक रहा है इनके ज़ेहन में? लालू यादव ने तो इतना भी कहा कि वह अनुशंसाओं को लागू कराने के लिए आंदोलन करेंगे, पर मायावती तो पूरे परिदृश्य से ग़ायब हैं.
हालांकि यह वही मायावती हैं, जिन्होंने वर्ष २००६-०७ में इस मसले को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास चिट्ठियों का पुलिंदा भेजा था. क्या डर है मायावती को? अपना वोट बैंक खिसकने का या अगड़ी जातियों के नाराज़ होने का? क्यों उहापोह की स्थिति में हैं मायावती?
रही बात लालू यादव की, तो अभी शायद वह तेल और तेल की धार देख रहे हैं. वाजिब भी है. फिलहाल वह प्रदेश और देश की राजनीति में कहीं नहीं हैं. बिहार में वह दोबारा अपने पैर जमाने की कशमकश में हैं. लाजिमी है, ऐसे संजीदा मसले पर वह पूरी तरह ठोक-बजाकर ही मुंह खोलेंगे.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभी वेट एंड वॉच का रु़ख अपना रखा है. हालांकि वह और उनकी पार्टी पूरी तरह इस आरक्षण के पक्ष में हैं. जदयू के ही राज्यसभा सांसद अली अनवर की लंबी लड़ाई का ही नती़जा है कि यह मसला यहां तक पहुंचा और सरकार पर इतना दबाव बन सका कि वह रिपोर्ट संसद में पेश करने को मजबूर हो गई.
राजनीतिक दलों में उबाल आ चुका है. रंगनाथ मिश्र कमीशन की अनुशंसाओं को संसद में पेश करने की मांग को लेकर राजनीतिक पार्टियां सरकार के ख़िला़फ आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर चुकी हैं. समाजवादी पार्टी इस मसले को लेकर जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन करने वाली है. भाजपा, जदयू, राजद एवं लोजपा के सांसद भी संसद और चौथी दुनिया अ़खबार के ज़रिए सरकार पर दबाव बना रहे हैं. इस मसले पर कोहराम मचा हुआ है, पर सरकार ने इस पर बिल्कुल चुप्पी साध रखी है. लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट लीक होने के मुद्दे पर चौतऱफा घिरी यूपीए सरकार अब रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट चौथी दुनिया में छप जाने के बाद सांसत में पड़ी दिख रही है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव कहते हैं कि सरकार तो इस कमीशन की अनुशंसाओं पर ग़र्द डाल चुकी थी.
अगर चौथी दुनिया ने इस रिपोर्ट को नहीं छापा होता तो यूपीए सरकार देश के ग़रीब दलित मुस्लिमों और दलित ईसाइयों के हक़ों के साथ खिलवाड़ करने का पूरा मन बना चुकी थी, लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाएगा, क्योंकि चौथी दुनिया अख़बार और इसके संपादक संतोष भारतीय ने देश की राजनीतिक पार्टियों को सरकार के ख़िला़फ एक पुख्ता आधार दे दिया है. इसकी बिना पर हम सरकार को इस बात के लिए मजबूर कर देंगे कि वह रंगनाथ मिश्र कमीशन की अनुशंसाओं पर न स़िर्फ संसद में बहस कराए, बल्कि उन्हें लागू भी करे.
समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह ख़ासे उत्तेजित हैं. इस मसले पर वह यूपीए सरकार पर बरस पड़ते हैं. कहते हैं कि सरकार ने कमीशन का गठन दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों की आंखों में धूल झोंकने के लिए किया. दरअसल सरकार यह चाहती ही नहीं कि देश का यह कमज़ोर तबका तरक्की करे या आगे ब़ढे. यूपीए सरकार स़िर्फ अपने मतलब का खेल, खेल रही है. अमर सिंह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में 2010 में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए सरकार अपने वोट बैंक की चिंता में कमीशन की रिपोर्ट को संसद में पेश नहीं कर रही है. अमर सिंह सवाल करते हैं कि जब दूसरी जाति के लोगों को आरक्षण दिया जा रहा है तो मुसलमानों को बाहर क्यों रखा जा रहा है? सरकार आरक्षण के मसले पर दोहरा मानदंड क्यों अपना रही है? सरकार को इस बात का जवाब देना ही होगा.
ज़ाहिर है, चौथी दुनिया में रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट छपने के बाद सरकार पर इसे संसद में पेश करने को लेकर दबाव बेहद ब़ढ चुका है. रंगनाथ मिश्र कमीशन की स़िफारिशें ऐसी हैं, जिन पर आसानी से अमल नहीं हो सकता. कमीशन ने जो स़िफारिशें दी हैं, उनके मुताबिक़ केंद्र सरकार और राज्य सरकार की नौकरियों में सभी कैडर और गे्रड के पदों पर अल्पसंख्यकों को 15 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा. शिक्षा में भी यह आरक्षण 15 फीसदी होगा. इसमें दस फीसदी हिस्सा मुसलमानों को दिया जाएगा. जो अल्पसंख्यक उम्मीदवार सामान्य मेरिट लिस्ट में होंगे, वे आरक्षण सीमा से बाहर होंगे. मुस्लिम और ईसाई दलितों को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जाएगा.
राजद के राज्यसभा सांसद जाबिर हुसैन कहते हैं कि सरकार जानबूझ कर कमीशन की स़िफारिशों पर चर्चा करने से बच रही है. सरकार को पता है कि इस पर चर्चा होते ही विपक्षी पार्टियां सरकार पर तुष्टीकरण का आरोप लगाकर उसे घेर लेंगी. आयोग की रिपोर्ट पिछले दो सालों से धूल खा रही है, पर सरकार ने जानबूझ कर इसे हाशिए पर डाल दिया है. सरकार के लिए कमीशन की रिपोर्ट गले की हड्डी बन चुकी है, जिसे वह न निगल पा रही है और न ही उगल पा रही है. सरकार को यह अच्छी तरह पता है कि अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने का मसला बेहद ही संवेदनशील है.
जदयू के राज्यसभा सांसद एन के सिंह भी जाबिर हुसैन की बातों पर सहमति जताते हैं. वह कहते हैं कि आंध्र प्रदेश में मुस्लिमों को आरक्षण देने की कोशिश पर हुआ बवाल सरकार भूली नहीं है. वह रिपोर्ट टेबल करने के पहले सभी पहलुओं का ऩफा-नुक़सान आंक लेना चाहती है. अगर सरकार अल्पसंख्यकों को आरक्षण देती है तो उसे बहुसंख्यकों की नाराज़गी झेलनी पड़ेगी. और, अगर ज़्यादा दिनों तक सरकार इस मसले को लटकाती है तो अल्पसंख्यकों का गुस्सा उस पर उतर सकता है. ऐसी हालत सरकार के लिए बेहद दुरूह है.
बात बिल्कुल सही है. फिलहाल सरकार इस स्थिति में तो है ही नहीं कि वह कमीशन की रिपोर्ट में ज़्यादा बड़ा फेरबदल किए बग़ैर उसे लागू करा सके. हालांकि इसी साल के लोकसभा चुनाव के दरम्यान अपने
घोषणापत्र में कांग्रेस ने यह कहा था कि वह तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक की आरक्षण नीति को राष्ट्रीय स्तर पर लागू कराने के लिए पूरी तरह तत्पर है, पर अब सरकार अलग राग अलाप रही है. कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन कहती हैं कि हमें पूरे मुद्दे की जांच करनी होगी. हम ऐसा कुछ बिल्कुल नहीं कर सकते, जो क़ानूनन नामुमकिन हो.
चौथी दुनिया अख़बार को राज्यसभा में लहराकर इस मसले को ज़ोर-शोर से उठाने वाले जदयू सांसद अली अनवर अंसारी और राजद सांसद राजनीति प्रसाद का मानना है कि सरकार के अलावा विपक्षी दलों में बैठे कुछ ऐसे मुस्लिम सांसद हैं, जो नहीं चाहते हैं कि रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट लागू हो. उन्हें इस बात की चिंता है कि अगर किसी भी तरह रिपोर्ट की अनुशंसाएं लागू हो गईं और मुसलमानों को आरक्षण मिल गया तो वे प़ढ-लिखकर तरक्की कर जाएंगे. फिर उनके बीच धर्म आधारित सियासत का गंदा खेल नहीं खेला जा सकता. वहीं समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद कमाल अख्तर दावे के साथ कहते हैं कि चाहे राजनीतिक पार्टियां जितना भी ज़ोर लगा लें, रिपोर्ट की अनुशंसाएं सरकार लागू करने वाली नहीं. क्योंकि, जब इस मसले पर बहस होगी तो सवाल यह भी उठेगा कि आ़िखर ऐसी क्या वजह रही कि आज़ादी के इतने सालों के बाद भी मुसलमान और ईसाई इतने पिछड़े हुए हैं? तब ठीकरा कांगे्रस के सिर ही फूटेगा. ज़ाहिर है, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ऐसी तोहमत नहीं लेना चाहेगी. फिर भी विपक्षी दलों की यह पुरज़ोर कोशिश होगी कि सरकार को इस मसले पर इतना मजबूर कर दिया जाए कि उसे संसद में इस पर बहस करानी ही पड़े.
बहरहाल, सरकार के ख़िला़फ इस मुद्दे पर जो राजनीतिक गोलबंदी दिख रही है, उस लिहाज़ से लिब्रहान कमीशन पर चर्चा होने के बाद रंगनाथ कमीशन पर संसद में हंगामा होने के पूरे आसार हैं। यक़ीनन इसका सेहरा चौथी दुनिया के माथे ही बंधता है.
दिनांक- 9 दिसंबर, 2009, समय- पूर्वान्ह 11 बजे.
स्पीकर के आने की घोषणा- माननीय सभासदों, माननीय अध्यक्षा जी…
हाथ जोड़कर अध्यक्षा जी कुर्सी की तऱफ ब़ढ रही हैं. तभी मुलायम सिंह यादव सहित कई सांसद चौथी दुनिया अ़खबार की प्रति हवा में लहराते हुए रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट पेश करने को लेकर सवाल करने लगते हैं कि सरकार इस रिपोर्ट को सदन में कब पेश करेगी?
स्पीकर : (शोर सुनकर) कृपया बैठ जाइए….
प्रश्न संख्या 281, श्री अमरनाथ प्रधान..
(शोर फिर से शुरू, सदस्यगण चौथी दुनिया अ़खबार लहराते हैं)
स्पीकर : कृपया बैठ जाइए, कृपया शांत हो जाइए, यह, इसे इस तरह नहीं दिखाएंगे. कृपया शांत होकर बैठिए, शांत होकर बैठिए. यह इस तरह न दिखाएं. इस तरह से अ़खबार न दिखाएं और अपनी जगह ग्रहण कर लें. हम आपको..
तभी मुलायम सिंह फिर कुछ बोलते हैं…
स्पीकर : हां मुलायम सिंह जी, हम आपसे… कृपया बैठ जाइए, यह इस तरह न दिखाएं, इस तरह न दिखाएं, जो भी गंभीर हैं. हम इस पर आपसे बात कर लेंगे. (शोर हो रहा है) जी हां, आपसे बात करेंगे.
मुलायम सिंह : यह कोई मामूली बात नहीं है.
स्पीकर : जी हां, यह कोई मामूली बात नहीं है. इस तरह अ़खबार न दिखाएं, अपना स्थान ग्रहण करें, इस पर बात करेंगे. बैठ जाइए-बैठ जाइए… (दो-तीन बार कहती हैं)
(शोर फिर से शुरू)
स्पीकर : कृपया बैठ जाइए, माननीय प्रधानमंत्री जी कुछ कहना चाह रहे हैं, प्रधानमंत्री जी कुछ कहना चाह रहे हैं., सुषमा जी स्थान ग्रहण कीजिए.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बोलते हैं, लेकिन उनकी आवाज़ नहीं आती है.
बाकी लोग कहते हैं कि आवाज़ नहीं आ रही है. सुनाई नहीं दे रहा है…
(शोरगुल हो रहा है)
स्पीकर : प्रश्नकाल, जी हां इसको हम शून्य प्रहर में उठा लेगे., सबसे पहले उठा लेंगे.
(शोर- सबसे पहले… सभी के हाथों में चौथी दुनिया की प्रति है)
स्पीकर : कृपया अ़खबार न दिखाइए. इस तरह अ़खबार न दिखाइए. अ़खबार नीचे रख लीजिए.
मुलायम सिंह अ़खबार लेकर बोले जा रहे हैं कि रिपोर्ट कैसे लीक हुई, हमें बताया जाना चाहिए.
स्पीकर : मुलायम सिंह जी, आप एक मिनट में अपनी बात कह लेंगे. एक मिनट में अपनी बात कह लीजिए, अ़खबार नीचे रखिए.
मुलायम सिंह : हम चाहते हैं कि वह इसे न बताएं, प्रधानमंत्री जी यहां आकर बता देंगे, हम बैठ जाएंगे.
स्पीकर : क्या चीज़?
मुलायम सिंह : रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट जुलाई में पेश हुई, 2007 में. दो साल से छिपा रही है सरकार. और आज अ़खबारों में लाखों में आ गया. अब तक लोकसभा में पेश नहीं हुई. तो यह कोई मामूली बात है अध्यक्षा जी? नहीं. एक हो, दो हो, रोजाना यही हो रहा है. लिब्रहान का इसी तरह हुआ. आखिर क्यों नहीं बहस कराई दो साल तक. यह मैं पूछना चाहता हूं. प्रधानमंत्री जी बैठे हैं, मुझे खुशी है.
पीछे से आवाज़ आती है-कब पेश होगी? और इस पर चर्चा कब कराएंगे? चर्चा अभी हो, पेश करें, तारी़ख बताएं. प्रधानमंत्री जी बताएं कब चर्चा कराएंगे?
स्पीकर : अभी इसकी नोटिस नहीं है. अभी आपने यह बात कह ली. इसके बाद में जो भी उचित होगा..
मुलायम सिंह बात काटते हैं- अभी प्रधानमंत्री… यह
ठीक नहीं है.
स्पीकर : अभी तुरंत-तुरंत ऐसे कह देंगे, अचानक में बात हो गई है. बैठ जाइए. आप स्थान ग्रहण कर लीजिए. अपना स्थान ग्रहण कर लीजिए, ठीक है आपने अपनी बात कह ली.
फिर शोर मचता है-आश्वासन मिलना चाहिए, प्रधानमंत्री जी आश्वासन दें.
स्पीकर: ठीक है आपने अपनी बात कह ली, अब प्रश्नकाल चलाएं.
मुलायम सिंह सहित बाक़ी लोग शोर कर रहे हैं- आश्वासन मिलना चाहिए. अध्यक्षा जी, ऐसी मनमानी मत कीजिए.
स्पीकर : सबने आपकी बात सुन ली, तुरंत इस चीज पर सरकार की तऱफ से प्रतिक्रिया नहीं आ सकती. स्थान ग्रहण कीजिए.
मुलायम सिंह : यह ठीक नहीं है, हमें यहां से चलना पड़ेगा.. आप चाहती हैं अध्यक्षा जी, आप चाहती हैं, माने आप चाहती हैं कि हम इसके अंदर आएं. हम इसमें अंदर नहीं आना चाहते, मजबूर करेंगे तो आएंगे..
स्पीकर : ठीक है, आप इसमें नोटिस दे देते.
मुलायम सिंह : हमें बता दीजिए, कब पेश करेंगे इतना ही.
स्पीकर- तुरंत कैसे बता सकते हैं? आपने बता दिया है, उन्होंने (प्रधानमंत्री जी) सुन लिया है.
मुलायम सिंह : आप बात सुनना ही नहीं चाहतीं.
स्पीकर : आप इस तरह से अ़खबार लहराइए मत, लहराइए मत…
मुलायम सिंह : मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि यह रिपोर्ट जब ज़ाहिर हो गई है तो कब पेश करेंगे सदन में?
(शोर में सुनाई पड़ता है कि समय निश्चित करके बतलाइए…)
स्पीकर: उन्होंने सुन लिया है.
मुलायम सिंह : आप बताने नहीं देना चाहतीं. यह क्या बात हुई? हम चेयर के लिए ऐसा कुछ कहना नहीं चाहते.
स्पीकर : क्या नहीं कहना चाहते?
मुलायम सिंह : आप संरक्षण दे रहे हैं?
स्पीकर : नहीं, हम संरक्षण नहीं दे रहे हैं. हमने तो आपको बुलवाया है. अब आप हर चीज में कहेंगे कि तुरंत रिएक्ट करें तो हम कैसे करें? (बात काटते हुए) आपने नोटिस नहीं दिया था मुलायम सिंह जी, मुलायम सिंह जी…
मुलायम सिंह : रिपोर्ट कब पेश करेंगे?
स्पीकर : अब यह नोटिस नहीं आई थी मेरे पास, आपने कहा यह गंभीर है, हमने आपको बोलने दिया.
मुलायम सिंह : प्रधानमंत्री ने दो बार खड़े होने का प्रयास किया, लेकिन आपने नहीं माना. यह क्या तरीक़ा है?
स्पीकर : कब?
मुलायम सिंह : आपसे मदद चाहिए मुझे, आप संरक्षण हमें दें.
स्पीकर : आपको हमने इसलिए बोलने दिया, अब आराम से बैठ जाइए और प्रश्नकाल चलने दीजिए.
(पीछे से आवाज़ आती है कि सरकार आश्वासन दे, आश्वासन दे… सब चिल्लाते हैं कि सरकार कोई आश्वासन दे)
क्वेश्चन नंबर 281…
स्पीकर : आप क्यों खड़े हो गए वासुदेव आचार्य जी, आप बैठ जाइए. यस ऑनरेबल मिनिस्टर्स, योर्स फर्स्ट सप्लीमेंटरी प्लीज…..देखिए हमने कई द़फा कहा है कि बैठ जाइए. सभी को चुप कराते हुए स्पीकर कहती हैं कि प्रधानमंत्री जी कुछ कह रहे हैं, कृपया शांत हो जाइए, शांत हो जाइए, प्रधानमंत्री जी कुछ कह रहे हैं.
मनमोहन सिंह : Madam, the honourable Mulayam Singh ji and other friends raised this issue। We had no notice but I take note of their sentiments and we will place the report before the house, before the end of the present session. (मैडम, सम्मानीय मुलायम सिंह जी और दूसरे मित्रों ने यह मुद्दा उठाया है. हमें इसकी कोई सूचना नहीं थी, लेकिन मैंने उनकी भावनाओं का संज्ञान लिया और हम चालू सत्र की समाप्ति के पहले इसे सदन के पटल पर रखेंगे.)
वे आठ मिनट जिन्होंने इतिहास रचा-संसद में चौथी दुनिया |
रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को लेकर सदन में लगातार हंगामा होता रहा. सांसद वेल में जाकर प्रदर्शन और नारेबाज़ी करते रहे. लगभग हर दल के सांसद चाहते थे कि यह रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जाए, पर वे न सरकार को तैयार कर सके और न ही चेयर पर दबाव डाल सके.
ससद में चौथी दुनिया की गूंज जारी है. कई सालों बाद किसी अ़खबार में छपी रिपोर्ट पर संसद में हंगामा हो रहा है. जब लोकसभा में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंहयादव और उनकी पार्टी के दूसरे सांसदों ने आपके अ़खबार चौथी दुनिया के हवाले से रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट पर सरकार को घेरा तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आखिरकार झुकना ही पड़ा. उन्होंने सदन को यह आश्वासन दिया है कि संसद के वर्तमान सत्र के अंत तक रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट पेश कर दी जाएगी. राज्यसभा में भी रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट पर हंगामा जारी रहा. इन दोनों सदनों में क्या हुआ, इसका पूरा विवरण आप इस अ़खबार के पेज नंबर 3 और 5 पर पढ़ सकते हैं. लेकिन इससे पहले इस मामले से जुड़े ऐसे दो पहलुओं के बारे में जानना ज़रूरी है, जो दुनिया की नजर में आने से रह गए. दोनों ही बातें चौंकाने वाली हैं. पहली तो यह है कि लोकसभा में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आश्वासन के बावजूद रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को पेश नहीं किया जाएगा. दूसरी बात यह है कि चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय को सच बोलने की सज़ा मिलने जा रही है. उन्हें राज्यसभा से नोटिस मिला है जिसमें यह कहा गया है कि चौथी दुनिया में छपे लेख से सांसदों के विशेषाधिकार का हनन हुआ है.
क्या सचमुच रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट संसद में पेश होगी?
रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट के मुद्दे पर मुलायम सिंह ने लोकसभा की कार्यवाही नहीं चलने दी. 9 दिसंबर को समाजवादी पार्टी के सांसद और मुलायम सिंह ने चौथी दुनिया अ़खबार लोकसभा में लहराया. जब उन्होंने इस अ़खबार में छपी रिपोर्ट का हवाला दिया तो प्रधानमंत्री को इस मसले पर बयान देने के लिए बाध्य होना पड़ा. गौर करने वाली बात यह है कि पिछले कई दिनों से राज्यसभा में रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को लेकर लगातार हंगामा होता रहा. राज्यसभा में अलग-अलग दलों के सांसदों ने रिपोर्ट को सदन में पेश करने की मांग की थी. राज्यसभा में इस मामले पर इतना ज़बर्दस्त हंगामा हुआ कि कई बार सदन की कार्यवाही रोकनी पड़ी. सरकार इस बात से वाक़ि़फ थी कि जिस मुद्दे पर राज्यसभा में हंगामा हो रहा है, वह मामला लोकसभा में भी उठ सकता है. इसलिए यह यक़ीन किया जा सकता है कि सरकार ने इससे निपटने के लिए रणनीति ज़रूर बनाई होगी. सरकार ने इस पर क्या रणनीति बनाई, इसकी जानकारी हमें कांग्रेस के सूत्रों से मिली.
लोकसभा में हंगामे की घटना के ठीक दो दिन बाद यानी 11 तारी़ख को कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को संसद में पेश नहीं किया जाएगा. लोकसभा में जो कुछ भी हुआ, उससे कांग्रेस पार्टी चिंतित है. मुलायम सिंह ने जिस तरह के तेवर दिखाए, और उस व़क्त लोकसभा में जिस तरह हंगामा चल रहा था, उसे शांत करने के लिए प्रधानमंत्री ने यह बयान दे दिया कि रिपोर्ट को इसी सत्र में पेश कर दिया जाएगा. कांग्रेस पार्टी इसे एक ऐसा मुद्दा मानती है, जिससे विपक्ष में फूट पड़ जाएगी. इसलिए इस मामले को जितना टाला जाए, उतना ही सरकार के लिए लाभदायक है. हमारे सूत्रों के मुताबिक़, दलित मुसलमानों और ईसाइयों को आरक्षण की सुविधा देने का सुझाव देने वाली रंगनाथ कमीशन की रिपोर्ट को दबाने के लिए अलग तेलंगाना राज्य के मुद्दे को हवा दी गई है, ताकि मीडिया और विपक्ष का ध्यान बंट जाए. यही वजह है कि राज्यसभा में भी रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को पेश करने की मांग पर सलमान खुर्शीद ने कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के मॉडल की बात कहकर असली मुद्दे को टाल दिया. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुलायम सिंह के तेवर को शांत करने के लिए यह तो कह दिया कि रिपोर्ट को इस सत्र में पेश किया जाएगा, लेकिन कब पेश किया जाएगा, इस बारे में कुछ भी नहीं बताया. कांग्रेस पार्टी इस बात से भी नाराज़ है कि झारखंड में मुसलमान कांग्रेस का खुलकर साथ नहीं दे रहे हैं. ग़ौर करने वाली बात यह है कि मनमोहन सिंह जी 17 तारी़ख को कोपेनहेगन जा रहे हैं. कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक़, उनके जाने के बाद तेलंगाना के मामले को और हवा दी जाएगी और ऐसी संभावना है कि प्रधानमंत्री के कोपेनहेगन जाने के अगले दिन ही संसद के वर्तमान सत्र को खत्म कर दिया जाएगा.
अगर हमारे सूत्रों की खबर सही है तो दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों के आरक्षण का मामला ठंडे बस्ते में जाना तय है. कमज़ोर और ग़रीब अल्पसंख्यकों के साथ यह बड़ी नाइंसा़फी होगी. हमारी हार्दिक इच्छा है कि चौथी दुनिया की यह खबर झूठी साबित हो. अगर ऐसा होता है तो हमें इस बात से सबसे ज़्यादा खुशी होगी. और अगर हमारी खबर सही साबित हुई तो संसद के इतिहास में इसे काले अध्याय के तौर पर याद किया जाएगा. सदन में वादा करने के बाद भी अगर प्रधानमंत्री उससे मुकर जाते हैं तो यह गलत परंपरा को प्रोत्साहित करेगी. अ़फसोस की बात यह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जैसे ईमानदार और सा़फ छवि वाले व्यक्तइगर ऐसा करते हैं तो देश की जनता आखिर किस नेता पर विश्वास करे!
संतोष भारतीय के खिला़फ विशेषाधिकार हनन का नोटिस
सच की राह पर चलना कठिन है, यह हम जानते हैं. क़ानून के डर से सच का साथ छोड़ देने वाली पत्रकारिता हमने नहीं सीखी है. यही वजह है कि चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय को राज्यसभा सचिवालय ने विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है. इस नोटिस की वजह है रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट को पेश न करना राज्यसभा का अपमान नामक लेख, जिसे चौथी दुनिया के पिछले अंक में छापा गया. इस लेख को आपके संपादक संतोष भारतीय ने लिखा. इस लेख को पढ़कर राज्यसभा के कई सांसद इतने नाराज़ हो गए कि उन्होंने चौथी दुनिया साप्ताहिक अ़खबार और इसके संपादक संतोष भारतीय के ख़िलाफ़ राज्यसभा में विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है. नोटिस देने वाले सांसदों में अली अनवर (जदयू), अजीज़ पाशा (सीपीआई), राजनीति प्रसाद (राजद) और साबिर अली (लोजपा) हैं. इन सांसदों ने यह नोटिस उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति हामिद अली अंसारी को दी. उपराष्ट्रपति ने इन सांसदों को यह विश्वास दिलाया है कि चौथी दुनिया और इसके संपादक पर सख्त कार्रवाई की जाएगी. सांसदों के आवेदन का संज्ञान लेते हुए राज्यसभा सचिवालय ने संतोष भारतीय को नोटिस भेज दिया.
हमने अपने 07-13 दिसंबर 2009 के अंक में रंगनाथ मिश्र कमीशन रिपोर्ट पेश न होना राज्यसभा का अपमान शीर्षक से लीड स्टोरी छापी. राज्यसभा के सांसदों को लगता है कि इस लेख से राज्यसभा का अपमान हुआ है और वे अपमानित महसूस कर रहे हैं. इसलिए इन सांसदों ने उपराष्ट्रपति से यह अनुरोध किया है कि चौथी दुनिया साप्ताहिक अ़खबार और इसके संपादक संतोष भारतीय पर विशेषाधिकार हनन का मामला चलाया जाए, ताकि इस प्रकार के अपमानजनक और आपराधिक कृत्य के लिए उन्हें प्रताड़ित किया जा सके.
इस लेख में संतोष भारतीय ने सच्चाई और निर्भीकता से राज्यसभा की सार्थकता पर सवाल उठाया था। रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को लेकर सदन में लगातार हंगामा होता रहा. सांसद वेल में जाकर प्रदर्शन और नारेबाज़ी करते रहे. लगभग हर दल के सांसद चाहते थे कि यह रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जाए, पर वे न सरकार को तैयार कर सके और न ही चेयर पर दबाव डाल सके. यही वजह है कि सरकार ने रिपोर्ट को लेकर न तो कोई क़दम उठाए और न ही कोई सकारात्मक बयान दिया. यूं कहें कि राज्यसभा के सांसदों की मांगों को टाल दिया. अब ऐसी राज्यसभा के बारे में क्या कहा जाए, जो कमज़ोर वर्गों के लोकतांत्रिक अधिकारों का संरक्षण करने में असफल रहने के कारण अपनी सार्थकता खोती जा रही है. क्या राज्यसभा के सभापति की यह ज़िम्मेदारी नहीं थी कि वह रिपोर्ट को पेश करने का निर्देश दे देते. इससे राज्यसभा में लोगों का भरोसा मज़बूत होता. कमीशन द्वारा पहचाने गए क्रिश्चियन समाज और मुस्लिम समाज के दलितों के लिए आरक्षण का फायदा उठाने का दरवाजा खुल जाता. यही सच संतोष भारतीय ने अपने लेख में लिखा था कि क्या राज्यसभा जिस पर लोकतंत्र को संभालने की ज़िम्मेवारी है, उच्च सदन कहा जाता है, शक्तिहीनों और निर्वीर्य लोगों के बैठने का एक क्लब भर रह गया है. क्या राज्यसभा से जनता को अपना भरोसा खत्म कर लेना चाहिए. संतोष भारतीय ने अपने लेख में एक निर्भीक पत्रकार की भूमिका निभाई और सभापति महोदय से यह गुज़ारिश की कि राज्यसभा की गरिमा को बचाने के लिए सदस्यों की मांगों पर ध्यान दीजिए और रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को सदन के पटल पर पेश कराइए. लेकिन चौथी दुनिया के इस लेख के लिए लेखक को राज्यसभा सचिवालय ने नोटिस दे दिया, जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि लेख से राज्यसभा और इसके सदस्यों के विशेषाधिकार का हनन हुआ है. सोचने वाली बात यह है कि जो मामला पिछले कई दिनों से राज्यसभा में उठता रहा, जिस पर हंगामा होता रहा, हर दल के लोग मांग करते रहे, लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई, उसी रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को लेकर जब मुलायम सिंह ने लोकसभा में हंगामा किया तो प्रधानमंत्री को यह आश्वासन देने के लिए बाध्य होना पड़ा कि रिपोर्ट को इस सत्र में पेश किया जाएगा. सभापति जी को यह समझना चाहिए कि यह कैसे हुआ. मुद्दा एक, लेकिन अलग-अलग सदनों में सरकार का जवाब अलग, कार्रवाई अलग. रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट से जुड़े घटनाक्रम से यह डर पैदा होता है कि लोकसभा के मुक़ाबले कहीं राज्यसभा अपनी सार्थकता तो खोती नहीं जा रही है. आपको बता दें कि राज्यसभा के सांसदों ने 7 दिसंबर को नोटिस सभापति को दिया, आठ दिसंबर को उसे सदन में रखा, जिसके ऊपर सभापति ने संतोष भारतीय और चौथी दुनिया को 9 दिसंबर को नोटिस भेजने का निर्देश दिया. दूसरी ओर 9 दिसंबर को ही लोकसभा में मुलायम सिंह और कई सांसदों के हस्तक्षेप के बाद प्रधानमंत्री ने रिपोर्ट को लोकसभा में इसी सत्र में रखने का स्पष्ट आश्वासन दिया. यह कैसा अंतर्विरोध है? रिपोर्ट रखने की मांग करने पर राज्यसभा से विशेषाधिकार हनन का नोटिस और उसी अख़बार के आधार पर लोकसभा में मुलायम सिंह की मांग पर प्रधानमंत्री का रिपोर्ट को रखने का आश्वासन. इस घटनाक्रम ने संतोष भारतीय के लेख को सही साबित किया है.