Thursday, December 03, 2009

गाँव खाली नहीं करेंगे मर जाएंगे 52 साल बाद जागा पुरातत्व विभाग






गाँव खाली नहीं करेंगे मर जाएंगे
52 साल बाद जागा पुरातत्व विभाग
पूरा देश विस्थापन का दंश झेल रहा है कहीं सेज के नाम पर लोगों को उजाड़ा जा रहा है तो कहीं बांधों और नेषनल पार्कों के बहाने । विकास और सौन्र्दयकरण के नाम पर गांव के गांव खाली कराए जा रहे हैं । हमेषा से ही लम्बे व जुझारू संघर्षों से दूर रहे हरियाणा सरीखे राज्य मंे भी लोगों ने अपनी आवाज बुलंद करनी षुरू कर दी है। अपनी जमीन छुटने,आषियाने उजड़ने का भय अब विद्रोह की आग में तबदील होने लगा है। लोग अतीत से सबक ले रहे हैं। चूकिं अब तक किसी न किसी बहाने अपनी छत से बेदखल हुए लोगों को न तो कोई मुआवजा मिला और न ही पुनर्वास की सुविधा।
पिछले 11 सालों से कैथल जिले के गांव पोलड़, निवासी अपने विस्थापित होने के डर से सहमे हुए हैं कि प्रषासन कब अपनी फौज के साथ आ धमके, उन्हें बेघर करने । इस बीच प्रषासन और गांव वालों के बीच कई संघर्ष हो चुके हैं और अब तक पुरातत्व विभाग को बैरंग ही लौटना पड़ा है। लेकिन अब पुरातत्व विभाग प्रक्रिया मंे तेजी आई है, इसके साथ ही लोगों के संघर्ष की तैयारियां भी जोर पकड़ने लगी हैं । पर सवाल यह उठता है कि क्या पोलड़ की जनता अपने संघर्ष के जरिये गांव को बचा पाएगी, इसका जवाब जानने के लिए हम गांव पोलड़ पहुंचे। कैथल से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह गांव 5000 की आबादी समेटे है। गांव की 90 प्रतिषत आबादी दलित व पिछड़े वर्ग से है। गांव को एकबारगी देखने से यह लगता है कि सब कुछ सामान्य है लेकिन अन्दर जो गहमागहमी और उथल-पुथल मची है उसका अन्दाजा लगाना मुष्किल है। बस स्टैण्ड पर ही एक बुर्जुग अर्जुन दास चाय की दुकान चलाते हैं।जब हमने उनसे पूछा कि पुरातत्व विभाग और गांव के बीच क्या विवाद चल रहा है ? जैसे वे अपना दुख सुनाने के लिए किसी सुनने वाले का ही इन्तजार कर रहे थे। उन्होनंे हमंे बताया कि 1954-55 मंे यहां एक बाढ़ आई थी जिसके चलते गांव सीवन से अधिकतर लोग इस जगह पर आ बसे क्योंकि यह जगह काफी उंची थी। उस वक्त न तो यहां कोई पुरातत्व विभाग का आदमी था न ही उसका कोई बोर्ड। तब आबाद होते इस गांव को किसी ने नहीं रोका और धीरे-धीरे यह गांव अच्छी आबादी ले गया और यही नहीं प्रषासन द्वारा यहां जलघर और गांव के लिए विभिन्न तरह की ग्रांट भी समय-समय पर गांव को मिलती रही है। यह गांव 2000 से पहले सीवन की पंचायत के अन्दर आता था लेकिन उसके बाद यहां की पंचायत को स्वतंत्र रूप दे दिया गया । किसी विभाग को इस ऐतिहासिक जगह की सुध नहीं आई और लोगो ने अपनी सारी उम्र की कमाई यहां मकान बनाने में लगा दी। यदि यह मान लिया जाए कि लोगों को इस बात की जानकारी नहीं थी लेकिन पुरातत्व विभाग और हरियाणा सरकार उस वक्त कहां थी। उपर से सरकार ने यहां सुलीहतें दे दी ,गांव में स्कूल से लेकर पानी की सप्लाई, बिजली,स्वास्थय और गली पक्की करने तक सभी सुविधाएं दी गई हैं । गांव के नाम पर राषन कार्ड और वोट कार्ड जारी किए हुए हैं। यदि गांव का निर्माण अवैध था तो हरियाणा सरकार और जिला प्रषासन यहां सालो तक क्यांे इतने रूप्ए खर्च करता रहा? क्या यह सब वोट बटोरने के लिए था? वास्तव मंे देखा जाए तो स्थिति विरोधाभासी है एक तरफ तो विभाग ग्रामीणांे को नए निर्माण करने को रोक रहा है जिसके लिए गांव मंे विभाग द्वारा एक व्यक्ति की नियुक्ति भी की गई है । दूसरी तरफ गांव मंे धड़ल्ले से ग्रांट भेजी जा रही है।
पुरातत्व विभाग की रिपोर्टांे और गांव की ऐेतिहासिक पृष्ठभूमि पर ध्यान दे तो अतीत में तो यहां दो बार खुदाई हो चुकी है। पहली बार खुदाई श्री मजूमदार के नेतृत्व मंे 1925 मंे हुई थी जिसमंे यहां मोहनजोदड़ो सभ्यता के अवषेष पाए गए। इसके बाद 25श्12श्1925 को 28875 न0़ नोटिफिकेषन तैयार किया गया । जिसे आधार बनाकर ए.एम.,ए.एस.आर. एक्ट 1958 के तहत इस गांव को पुरातत्व विभाग ने अपने दायरे मंे ले लिया और किसी भी तरह के निर्माण को यहां अवैध घोषित कर दिया गया। 1958 से लेकर 1997 तक पुरातत्व विभाग सोया रहा। नवम्बर 1995 मंे पहली बार निर्माण रोकने के लिए मुनियादी कराई गई। अब निमार्ण रोकने और गांव खाली करने के नोटिस बारश्बार भेजे जा रहे हैं तो लोगांे के दिलांे मंे भी आग सुलग रही है । लोग अपने आषियाने बचाने के लिए आंदोलन कीसी भी हद तक जाने को तैयार हैं । लाला अर्जुन दास कहते हैं कि जिस तरह गुर्जर आंदोलन ने अपनी बात सरकार से मनवाई है उसी तरह अगर प्रषासन नहीं माना तो हम भी ऐसी ही लडाई षुरू करंेगे । जब हमने गांव वालांे से यह पूछा कि आप सरकार से समझौता किन षर्तों पर करेगें तो सब लोगांे का यही जवाब था कि पहली बात हम अपनी जमीन छोडंेगे ही नहीं। यदि ऐसी नौबत आ भी गई तो सरकार हमंे उचित मुआवजा और जमीन मुहैया कराती है तो हम इस बारे मंे सोच सकते है।
जिस गांव की 90 प्रतिषत आबादी अनुसूचित जाति से सम्बन्ध्ति हो और जिनके पास अपनी पूरी जिन्दगी की कमाई के रूप मंे केवल एक मकान हो और वह भी सरकार किसी बहाने से उनसे छीनने का प्रयास करे तो स्वाभाविक ही है कि सरकार की यह मंषा सहज ही पूरी न हो पाए । लोग अपने जीवन की अन्तिम घड़ी तक लडें़। अब देखना ये है कि क्या पोलड़ की अपने गावं को बचा पाएगी या फिर वह हरियाणा के नक्षे से मिट जाएगा।






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