भिखमंगे !
–मनबहकी लाल
साभार: दायित्वबोध (सितम्बर २००३)
भिखमंगे आये
नवयुग का मसीहा बनकर
लोगों को अज्ञान अशिक्षा और निर्धनता से मुक्ति दिलाने
अद्भुत वक्तृता, लेखन-कौशल और
सांगठनिक क्षमता से लैस
स्वस्थ-सुदर्शन-सुसंस्कृत भिखमंगे आये
हमारी बस्ती में।
एशिया-अफ्रीका-लातिनी अमेरिका के
तमाम गरीबों के बीच
जिस तरह पहुँचे वे यानों और
वाहनों पर सवार,
उसी तरह आये वे हमारे बीच।
भीख, दया, समर्पण, और भय की
संस्कृति के प्रचारक
पुराने मिशनरियों से वे अलग थे,
जैसे कि उनके दाता भी भिन्न थे
अपने पूर्वजों से।
अलग थे वे उन सर्वोदयी याचकों से भी
जिनके गांधीवादी जान्घियों में
पड़ा रहता था
(और आज भी पड़ा रहता है।)
विदेशी अनुदान का नाड़ा।
भिखमगें आये
अलग-अलग टोलियों में।
कुछ ने अपने पश्चिमी वैभवशाली दाताओं की महिमा
बखानी,
तो कुछ का दावा था कि वे
लुटेरों को उल्लु बना कर
रकम ऐंठ आयें हैं
जनहित के लिये और
जनक्रान्ति की तैयारी के लिये
कुछ का कहना था कि
क्रान्ति की तैयारियों का भारी बोझ
न पड़े इस देश की गरीब जनता पर
इसलिये उन्होनें भीख से
संसाधन जुटाने का नायाब तरीका अपनाया है।
कुछ का कहना था
कि क्रान्ति अभी बहुत दूर है
इस लिये वे तब तक कुछ सुधार ही
कर लेना चाहते हैं
सँवार देना चाहते हैं
दलितों-शोषितों-वंचितों का जीवन
एक हद तक
और फीस के तौर पर, बिना नेता-नौकरशाह
बनने का पाप किये
खुद भी जुटा लेना चाहते हैं
घर, गाड़ी वगैरह कुछ अदनी सी चीजें
और अगर खुद वे आ गयें हैं
जनता की खातिर इस नर्क जैसे देश में
तो क्या इतना भी चाहना अनुचित है
कि उनके बेटे बेटी शिक्षा पायें
अमरीका में ?
कुछ का कहना था कि
अशिक्षा ही हमारे दुर्भाग्य का मूल है
अतः वे हमें शिक्षित करने आयें हैं
स्वास्थ्य और परिवार नियोजन के बारे में
बताने आयें हैं।
कुछ का कहना था कि
हम सहकारी संस्था बनाकर उत्पादन करें
तो हल हो जायेंगी हमारी
सारी दिक्कतें।
कुछ ने कहा कि
जो ट्रेड यूनियनें न कर सकीं
वे वह कर दिखायेंगे,
राज्यसत्ता तो चाँद माँगना है,
वे हमें अठन्नी-चवन्नी के लिये
नये सिरे से लड़ना सिखायेंगे।
कुछ ने कहा कि दोष
कोर्ट-कचहरी-कानून और
सरकार का नहीं
हमारे गंवारपन का है
अतः वे हमें हमारे अधिकारों,
संविधान और श्रम-कानूनों के बारे में
पढ़ायेंगे
और जब हम जान जायेंगे कि
हमें सरकार से क्या माँगना है
तो हम माँगेंगे एक स्वर से
और हमारी याचना के तुमुलनाद
से जागकर, डरकर,
सरकार हमें दे देगी वह सब कुछ
जो हम चाहेंगे।
भिखमंगों ने हमें लताड़ा
कि यदि सरकार अपनी जिम्मेदारियाँ
पूरी नहीं करती
तो हम उसका मुँह क्यों जोहते हैं
यदि वह नौकरियाँ नहीं देती है
तो हम खुद क्यों नही कर लेते
कुछ काम-धाम ?
यदि वह सभी कारखानों को
पूँजीपतियों को दे रही है
और पूँजीपति हमें रोज़गार नहीं दे रहे
तो हम स्वयं मिलकर क्यों नहीं
शुरू कर लेते कोई उद्यम
और फिर भी नहीं चलता काम
तो कम क्यों नही कर लेते
अपनीं जरूरतें ?
बंद क्यों नहीं कर देते
ऊपर की ओर देखना ?
चरम पर्यावरणवादी बन
चले क्यों नहीं जाते
प्रकृति की गोद में निवास करने ?
भिखमंगों ने बेरोज़गार युवाओं से
कहा— “तुम हमारे पास आओ,
हम तुम्हे जनता की सेवा करना सिखायेंगे,
वेतन कम देंगे
पर गुजारा भत्ता से बेहतर होगा
और उसकी भरपाई के लिये
‘जनता के आदमी’ का
ओहदा दिलायेंगे,
स्थायी नौकरी न सही,
बिना किसी जोखिम के
क्रान्तिकारी बनायेंगे,
मजबूरी के त्याग का वाज़िब
मोल दिलायेंगे”
“रिटायर्ड, निराश थके हुए क्रान्तिकारियों,
आओ हम तुम्हें स्वर्ग का रास्ता बतायेंगे।
वामपन्थी विद्वानों, आओ
आओ सबआल्टर्न वालों,
आओ तमाम उत्तर मार्क्सवादियों
उत्तर नारीवादियों वगैरह-वगैरह
आओ, अपने ज्ञान और अनुभव से
एन.जी.ओ. दर्शन के नये-नये शष्त्र और शाष्त्र रचो”
आह्वान किया भिखमंगों ने
और जुट गये दाता-एजेंसियों के लिये
नई रिपोर्ट तैयार करने में।
भिखमंगों ने भीख को नई गरिमा दी,
भूमंडलीकरण के दौर में
उसे अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा दी.
भिखमंगों ने क्रान्ति और बदलाव की
नई परिभाषाएं रची।
भिखमंगों ने कहा— “भूल जाओ
‘पैबन्द और कुर्ते का गीत’ “
वह पुराना पड़ चुका है.
हम माँगकर लाते रहेंगे तुम्हारे लिये पैबन्द
तुम उन्हें सहेजना।
उन्हें जोड़कर एक दिन तैयार हो जायेगा
एक पूरा का पूरा कुर्ता।
भूख से तड़पते हुए मर जाओगे
यदि समूची रोटी चाहोगे।
हम तुम्हारे लिये माँगकर लाते रहेंगे
रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े,
तुम उन्हें खाते जाओ
एक दिन तुम्हारे पेट में होगी
एक साबुत रोटी.
मत करो बातें सारे कारखानों
और कोयला और खनिज और
मुल्क की हुकूमत पर कब्जे की
ऐसी कोशिशें असफल हो चुकी”
हम पूछ्ते हैं व्यग्र होकर
“आखिर कब तक चलेगा
इस तरह”
वह तर्ज़नी उठाकर हमें रोकते हैं,
“हम एक अर्ज़ी लिख रहे हैं”
फिर वे एक रिपोर्ट लिखते हैं,
फिर चिन्तन करते हैं
फिर दौरा करने किसी और दिशा में
चल देते हैं।
हम पाते हैं, भिखमंगे नही वे
अपहरणकर्ता हैं
बदलाव के विचारों के, स्वप्नों और आशाओं के.
आत्मा की उष्मा के खिलाफ
सतत सक्रिय
शीत लहर हैं ये भिखमंगे।
No comments:
Post a Comment